पृथ्वी पर
एक शिशु लेता है जन्म
पुकारता है माँ
प्रेम और ममता का आँचल
फ़ैल जाता है उसपर
यहाँ से शुरू होती है
उसके संघर्ष की कथा
ममता की छांव से निकल
ज़माने की टकराव के बीच
खुद को स्थापित करने
और अपने वजूद को
साबित करने की दौड़ !
इस दौड़ में सच्चाई ये है कि हमारा आधा जीवन अपने माता-पिता, अभिवावकों के आज्ञा पालन, उनकी आज्ञाकारिता में निकल जाता है और शेष आधा जीवन अपने दायित्वों, अपने बच्चो, अपनी अगली पीढ़ी के प्रति कर्त्तव्य में।
ऐसा है मानो आपके लिए अपना कोई जीवन ही नहीं, जो आपके अपने लिए, अपनी इच्छाओं, अपनी कल्पनाओं के अनुरूप हो।
हिंदुस्तान में यह एक बड़ी विसंगति है, अन्य देशो में भी होगी, नहीं जानता।
खैर आधा जीवन आज्ञा कारिता में और शेष आधा दायित्व बोध में बिताने के बाद, ६० पार अवकाश प्राप्त कर, यहाँ से शुरू होता है आपका जीवन ।
तो अपना वजूद एक उपक्रम है,
अपने आप और आप सभी से संवाद स्थापित करने की कोशिश की दिशा में एक पहल।
कुछ कवितायें, कुछ आलेख, कुछ स्मृति, कुछ बायोग्राफी, कुछ टेलीफिल्म्स, कुछ खट्टे मीठे अनुभव, कुछ श्रेष्ठ लोगों के प्रति सम्मान, कुछ रेखा चित्र और कुछ जीवन स्केच।