जमींदारी उन्मूलन के पश्चात अपने विगत वैभव और वर्तमान अभाव से जूझते, नौकरी में संघर्षशील एक मध्यवर्गीय बैंकर्स परिवार में जन्म. बैंक की नौकरी से विरोध के बावजूद परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि लाचारी में खुद भी एक बैंकर बन बैठा.
हिंदी साहित्य की पढ़ाई की. कवि, लेखक, चित्रकार, पेंटर, गायक, रंगमंच, टीवी टेली फिल्मों से लेकर राजनीति के क्षेत्र तक, न जाने कहाँ कहाँ अपनी किस्मत आजमाने के लिए हाथ पांव मारे. थोड़ा थोड़ा सब किया.
जीवन के बड़े उतार चढ़ाव देखे. बड़े कवि-लेखकों, फिल्मकारों, समीक्षकों के संपर्क में रहा. उन सबका स्नेह मिला.आंशिक सफलता भी मिली और सराहना भी!
लेकिन नियति के खेल निराले!
कहावत थी कि ‘पढ़ें फारसी बेचे तेल’!
मैं अंततः साहित्य पढ़ कर बैंकर बन बैठा.
फिलहाल स्टेट बैंक के अधिकारी संवर्ग से सेवा निवृत्ति के पश्चात अपने अधूरे सपनों को पूरा करने की दिशा में मेरा यह छोटा सा उपक्रम, ताकि दूसरे भटके दुविधा ग्रस्त युवा अपनी रुचि से एक सार्थक दिशा में पहल कर सकें! किसी का मार्गदर्शन मेरे लिए सुकून का विषय होगा!